चोटी की पकड़–97

"यह तलवार कैसे बाँधी जाएगी? कमर नापनी पड़ेगी या नहीं? इससे कुछ समझ में नहीं आया?


 राजे से बातचीत हँसी-खेल है? हम बगल में रहेंगे, इससे तुमको इशारा कर दिया गया, तुम्हारी मंजूरी ले ली गई, इतनी दूर तुम निकलकर आ गईं।

 यहाँ हम पकड़ जाएंगे, तो कोई क्या कहेगा? ये दोनों इतनी रात को यहाँ क्या करते थे, क्यों आए थे, इनका आपस में क्या रिश्ता है? हम तभी बच सकते हैं हम मियाँ-बीवी-तुम रानी, हम राजा। वहाँ तुमसे क्या कहलाया जाना है?"

बुआ झेंपी, मगर यह झेंप मंजूरी नहीं।

"हम तुम्हारी कमर नापें?"

"हे भगवान् !" बुआ अंतरात्मा से रोयीं।

"कौन हो तुम?".रुस्तम के पास पहुँचकर किसी ने पूछा। भरी आवाज।

रुस्तम डाल की ओर बढ़ा और मूठ पकड़कर तलवार निकाल ली- "सुअर, कौन है तू?" पूछा।

तलवार के निकलते ही पिस्तौल की आवाज हुई, मगर आदमी के निशाने पर नहीं; मर्द का गला गरजा, "भग यहाँ से, या रख तलवार, नहीं तो खाता है गोली।"

रुस्तम भगा। बागीचे में पहले जैसा सन्नाटा छा गया।

प्रभाकर डेरे पर आ रहा था। यही उसका रास्ता था। आते हुए देखा। बुआ से पूछा, "आप कौन हैं?"

घबराहट के मारे बुआ का बोल बंद हो गया, प्रभाकर खड़ा रहा। धैर्य देकर पूछा, "आप कौन हैं?"

"हम बुआ।" लड़की के स्वर से, रक्षा पाने के लिए, बुआ ने कहा।

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